तुम कहो या न कहो तुम्हारी आखें ये बयाँ करती हैं
कि इस जहाँ में तुम्हे हम से ज्यादा कोई नहीं चाहता।

एक तुम्ही तो हो जो खुश हो हर हाल में मेरे साथ
नहीं तो इस खंडहर को मकान कौन समझेगा।

सिवा उसके कौन है जो पहचानेगा मुझे भीड़ मे
सिवा उसके मैं खास हूँ किसके लिए इस दुनिया में ।
-------राजेश अस्थाना"अनंत"

No comments:

Post a Comment