वादा था साथ चलने का
लेकिन यह खेल तो नसीबों  है
तुम कहाँ तक पहुंचे
हम कहाँ तक पहुंचे।

बंद जुबाँ से देता हूँ आवाज़
शायद  तुम तक पहुंचे
बस इतनी चाहत है,
यहाँ जो भी  फासले  हों
लेकिन वहां हम साथ साथ पहुंचे।

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