कौन हो तुम--राजेश अस्थाना "अनन्त"

कौन हो तुम
सागर हो
जो मुझे डुबोय
जा रहे हो।

जब भी खड़ा
होना चाहता हूँ
लहरों का कोई थपेड़ा
गिरा देता है ।

फिर भी खड़ा
होना चाहता हूँ
फिर से जीना
चाहता हूँ।

तुम इतने गहरे
क्यों हो की
तैर के भी पार
नहीं हो पा रहा हूँ ।

कौन हो तुम
सागर हो
जो मुझे
डुबोय जा
रहे हो ।

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