राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के संदेश के मायने

गणतंत्र दिवस की पूर्व-संध्या पर देश के नाम राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के संदेश में कई बातें ऐसी थीं जिन्हें लेकर विवाद उठना स्वाभाविक है।
उन्होंने कहा कि---
1-- लोकलुभावन अराजकता शासन का विकल्प नहीं हो सकती।
2-- सरकार कोई ‘परमार्थ-दुकान’ नहीं है
3--अगले आम चुनाव के संदर्भ में स्थिरता की वकालत की।

         बाजार-केंद्रित सुधार के पैरोकार सबसिडी के दोष और अर्थव्यवस्था पर उसके कुप्रभाव गिनाते नहीं थकते। लेकिन कर-त्याग के तौर पर लाखों करोड़ रुपए के लाभ कॉरपोरेट जगत को दिए गए हैं।
हिसाब लगाया जाए तो इस सब के मुकाबले आम लोगों को सबसिडी के तौर पर दी जाने वाली रियायत मामूली ही ठहरती है।
 इस पर सवाल क्यों नहीं उठाए जाते?
अगली सरकार कैसे बनेगी, यह राजनीतिक दलों को ही तय करना होगा। किसी तरह का समीकरण उपयुक्त होगा और किस तरह का नहीं, यह सियासी बहस का विषय है। राष्ट्रपति का पद राजनीति से परे माना जाता है। ऐसी संवैधानिक सत्ता, जो राजनीति से परे मानी जाती है, उसका इस मसले पर ऐसा कुछ कहना, जिसमें किसी तरह का झुकाव प्रदर्शित करने की गुंजाइश देखी जाए, संगत नहीं माना जा सकता।

No comments:

Post a Comment