‘संवेदी पुलिस’


सवाल है ‘संवेदी पुलिस’ किसकी जरूरत है? पुलिस विभाग की? राजनीतिकों की? समाज की? स्त्रियों की? लोकतंत्र की?
एक वर्ष का समय कम नहीं होता, बशर्ते हम सबक लेना चाहें कि हम पहुंचे कहां? इस बीच यौन अपराधियों के विरुद्ध कानूनी ढांचा मजबूत हुआ, पर स्त्री की सुरक्षा की कानूनी मशीनरी ज्यों की त्यों अप्रभावी दिखी।उत्पीड़न और बलात्कार की बाढ़ जरा भी नहीं थमी। वर्ष भर के अनुभवों का सबक यही निकलेगा- राज्य मशीनरी का प्राधिकार बढ़ाने से स्त्री-सुरक्षा की प्रणाली प्रभावी या विश्वसनीय नहीं हुई।
 इस महीने दिल्ली और कोलकाता में घटे दो चर्चित सामूहिक बलात्कार प्रकरणों से क्या सीख ली गई?

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