राजनीति एक मिशन

आजादी की लड़ाई के दौरान राजनीति एक मिशन थी। राजनीति में लोग कुर्बानी के जज्बे के साथ आते थे। उस दौर के नेताओं में पदलोलुपता नहीं थी। आजादी मिलने के बाद तो नए भारत के निर्माण का जज्बा उफान पर था। आजादी के कुछ वर्षों बाद कुछ राष्ट्रीय नेताओं की महत्त्वाकांक्षाएं जागृत होने लगीं, लेकिन वे आज की तरह सरेआम नहीं, लोकलाज के परदे के अंदर विकसित होती रहीं। लेकिन छठे दशक तक आते-आते सारे मूल्य विघटित होने लगे। मिशन की भावना कमजोर पड़ने लगी।नैतिक मूल्यों में गिरावट का सिलसिला बरकरार रहा। राजनीति का अपराधीकरण और अपराध का राजनीतिकरण होता रहा। राजनीति से मिशन के तत्त्व तिरोहित हो गए और वह पूरी तरह एक व्यवसाय या धंधे में परिणत हो गई। चुनाव काले धन के निवेश और आर्थिक स्रोतों पर कब्जे का माध्यम बन गया। जनप्रतिनिधि जन-समस्याओं के निवारण की जगह अपनी सुख-सुविधाएं बढ़ाने में व्यस्त हो गए। धनबल और बाहुबल का प्रयोग बढ़ने लगा। सीधे-सादे और गरीब सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए राजनीति के द्वार बंद हो गए।ऐसे में ‘आप’ जैसी पार्टी नैतिक मूल्यों की पुनर्स्थापना की वाहक बन कर सामने आई। दिल्ली की सत्ता में आने के साथ इसने जनप्रतिनिधियों के विशिष्टता-बोध को खत्म कर दिया। सुरक्षा के तामझाम और बंगला आदि लेने से इनकार कर दिया। इसके नेता शपथ ग्रहण समारोह में मेट्रो पर सवार होकर पहुंचे। स्वयं को आम आदमी के रूप में पेश किया। इस पार्टी के अभ्युदय को भविष्य की राजनीतिक संस्कृति के लिए एक शुभ संकेत माना जाना चाहिए। आप सरकार कितने दिनों तक चलेगी या क्या करिश्मा दिखा पाएगी, यह सवाल उतना महत्त्वपूर्ण नहीं है, जितना यह कि उसने कौन-सा संदेश दिया है? किन प्रतिमानों की स्थापना की है और उनका दूरगामी प्रभाव क्या पड़ने वाला है? एक अंतर तो अभी से दिखने लगा है कि अब राजनीतिक दलों के अंदर ईमानदार दिखने की प्रतिस्पर्धा शुरू हो गई है।
        पंचतारा होटलों की आभिजात्य संस्कृति की जगह आम आदमी पार्टी ने सड़क की संस्कृति स्थापित की। इसका असर यह पड़ा कि वातानुकूलित कमरों में बैठ कर राजनीतिक आंकड़ों का जोड़-तोड़ करने वाले भी खुद को धरतीपुत्र बताने में लग गए। उनमें सामान्य नागरिकों की तरह दिखने की होड़ लग गई। दिल्ली में ‘आप’ सरकार की जनोन्मुख कार्यशैली राजनीतिक प्रयोग मात्र नहीं है। इसके अंदर भारतीय मानस की आकांक्षा, संसदीय राजनीति में आई विकृतियों और नैतिक मूल्यों की गिरावट के प्रति क्षोभ शामिल है। इसीलिए जनता ने किसी विचारधारा के पीछे भागने की जगह केवल कार्यक्रम या कार्यनीति की घोषणा करने वाली पार्टी को सिर-आंखों पर बिठाया। राजनीति के एक नए दौर की शुरुआत हुई है। लंबे अंतराल के बाद राजनीति में मिशन की भावना का समावेश हो रहा है।

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