2025 में एक बार फिर सिद्ध हुआ: जो संबंध जितनी तेजी से बनते हैं, उतनी ही तेजी से उनका क्षरण भी होता है
----- राजेश अस्थाना अनंत
2025 के अनुभव ने एक बार फिर उस शाश्वत सत्य को सामने रखा है जिसे दर्शन सदियों से कहता आया है—जो संबंध बहुत तेजी से बनते हैं, वे उतनी ही तेजी से बिखर भी जाते हैं। यह केवल सामाजिक अनुभव नहीं, बल्कि मनुष्य की चेतना, अपेक्षाओं और समय के प्रति उसके अधैर्य का दार्शनिक परिणाम है।
तेज़ी से बनते संबंध प्रायः भावनाओं की तीव्रता पर खड़े होते हैं, न कि समझ की गहराई पर। जहाँ संवाद से पहले आकर्षण, और जानने से पहले अपनापन आ जाता है, वहाँ संबंध एक कल्पना बन जाते हैं—वास्तविकता नहीं। भारतीय दर्शन में इसे आसक्ति कहा गया है, जो विवेक से नहीं, वासना और मोह से जन्म लेती है। गीता का स्पष्ट कथन है कि मोह से भ्रम उत्पन्न होता है, और भ्रम से विवेक नष्ट होता है। जब विवेक नहीं होता, तो संबंध टिक नहीं पाते।
पाश्चात्य अस्तित्ववादी दर्शन भी इस अनुभव की पुष्टि करता है। सार्त्र और कामू के अनुसार आधुनिक मनुष्य संबंधों में भी तात्कालिक संतुष्टि खोजता है। वह संबंध को प्रक्रिया नहीं, परिणाम मानने लगा है। जैसे ही2025 में एक बार फिर सिद्ध हुआ: जो संबंध जितनी तेजी से बनते हैं, उतनी ही तेजी से उनका क्षरण भी होता है उससे अपेक्षित सुख देना बंद करता है, वह उसे बोझ समझने लगता है। इसीलिए तेज़ी से बने संबंधों में धैर्य का अभाव होता है, और धैर्य के बिना कोई भी मानवीय बंधन स्थायी नहीं हो सकता।
2025 ने यह भी दिखाया कि डिजिटल युग ने संबंधों की गति बढ़ा दी है, पर उनकी जड़ें कमजोर कर दी हैं। एक क्लिक में परिचय, एक संदेश में अपनापन और एक गलतफहमी में दूरी—यह क्रम अब सामान्य हो गया है। चीनी दर्शन में कहा गया है कि जो जल बहुत वेग से बहता है, वह भूमि को सींचने के बजाय बहा ले जाता है। संबंध भी वही हैं—वेग जब अधिक हो, तो पोषण नहीं, क्षरण होता है।
स्थायी संबंध समय माँगते हैं—समय समझने का, स्वीकार करने का और बदलने का। वे धीरे-धीरे बनते हैं, जैसे कोई वृक्ष। जो बीज आज बोया जाता है, वह कल फल नहीं देता। 2025 का अनुभव हमें यही सिखाता है कि संबंधों में गति नहीं, गहराई आवश्यक है; तात्कालिकता नहीं, ठहराव चाहिए।
अंततः यह कहना उचित होगा कि तेज़ी स्वयं में दोष नहीं है, दोष है अधैर्य का। जब मनुष्य संबंधों को उपभोग की वस्तु बना लेता है, तब उनका टूटना अनिवार्य हो जाता है। 2025 का सबसे बड़ा दार्शनिक सबक यही है—जो संबंध धीरे बनते हैं, वे ही समय की परीक्षा में टिकते हैं।
राजेश अस्थाना अनंत
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