भारत भाषाओं का महाद्वीप है। यहाँ सैकड़ों भाषाएँ और बोलियाँ बोली जाती हैं, जिनमें से प्रत्येक की अपनी समृद्ध परंपरा, साहित्य और सांस्कृतिक गौरव है। ऐसे में यह प्रश्न स्वाभाविक है कि सम्पूर्ण भारत में संपर्क और संवाद की सहज धारा किस भाषा के माध्यम से बहे। हिंदी, जो जनसंख्या के बड़े हिस्से की भाषा है और उत्तर से दक्षिण, पूरब से पश्चिम तक समझी और बोली जाती है, स्वाभाविक रूप से इस दायित्व की पात्र है। परंतु हिंदी को सही मायनों में संपर्क भाषा बनाने के लिए उसका अन्य भारतीय भाषाओं से सहयोग और समन्वय आवश्यक है।
1. भाषाओं के बीच परस्पर आदान-प्रदान
हिंदी तभी राष्ट्रीय संपर्क भाषा बनेगी जब वह अन्य भाषाओं के प्रति आत्मीयता और सम्मान का भाव रखे। हिंदी में तमिल, तेलुगु, कन्नड़, बांग्ला, असमिया, मराठी, पंजाबी आदि भाषाओं से शब्द और भाव सहजता से ग्रहण किए जाएँ। जैसे संस्कृत ने कभी विभिन्न भाषाओं को जोड़ा था, वैसे ही हिंदी भी भाषाओं के इस आदान-प्रदान से समृद्ध होगी।
2. अनुवाद और प्रकाशन की संस्कृति
यदि हिंदी में विभिन्न भारतीय भाषाओं के श्रेष्ठ साहित्य का अनुवाद लगातार होता रहे, तो हिंदी केवल उत्तर भारत की ही नहीं, बल्कि पूरे देश की सांस्कृतिक प्रतिनिधि भाषा बनेगी। इसी प्रकार हिंदी साहित्य का भी अन्य भाषाओं में अनुवाद होना चाहिए। यह द्विमुखी प्रवाह भारतीयता को गहराई से स्थापित करेगा।
3. शिक्षा और तकनीक में सहयोग
शिक्षा के क्षेत्र में हिंदी को विज्ञान, प्रौद्योगिकी और आधुनिक ज्ञान की भाषा बनाने के लिए अन्य भाषाओं के अनुभवों और शब्दावली का सहारा लिया जा सकता है। इसी प्रकार डिजिटल युग में हिंदी और अन्य भाषाओं के लिए साझा सॉफ़्टवेयर, अनुप्रयोग और शब्दकोष विकसित हों, तो भाषा का प्रसार और सरल हो जाएगा।
4. सांस्कृतिक संगम
भारतीय भाषाएँ अलग-अलग नदियों की तरह हैं और हिंदी को महासागर बनने के लिए इन नदियों का संगम अपने भीतर समेटना होगा। फ़िल्म, नाटक, संगीत और लोककला के स्तर पर भी भाषाओं का मेल कराया जाए। हिंदी सिनेमा पहले से ही इस दिशा में एक बड़ा माध्यम है, जिसे और व्यापक बनाया जा सकता है।
5. भाषा नहीं, सेतु का भाव
हिंदी का उद्देश्य अन्य भाषाओं पर वर्चस्व जमाना नहीं होना चाहिए, बल्कि उन्हें जोड़ने का सेतु बनना चाहिए। जब तमिलभाषी, बांग्लाभाषी या कश्मीरीभाषी को यह लगेगा कि हिंदी उनकी भाषा और संस्कृति का सम्मान करती है, तभी वे उसे अपनाएँगे।
निष्कर्ष
हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं के सहयोग से ही हिंदी राष्ट्रीय संपर्क भाषा का स्थान प्राप्त कर सकती है। यह सहयोग हिंदी को उदार, लचीली और बहुभाषिक चेतना से संपन्न बनाएगा। हिंदी जब अन्य भाषाओं की मिठास, शब्दावली और संस्कारों को आत्मसात करेगी, तब वह केवल एक भाषा नहीं रहेगी, बल्कि पूरे भारत की साझा आत्मा और संवाद का माध्यम बन जाएगी।