डूबना और तैरना – जीवन का सत्य

डूबना और तैरना – जीवन का सत्य


राजेश अस्थाना अनंत

कभी–कभी ज़िंदगी
हमें इतनी गहराइयों में उतार देती है
कि लगता है—
अब लौट पाना शायद सम्भव नहीं।

पर सच यह है कि
डूबना भी एक प्रकार का जन्म है,
जहाँ हम अपनी ही परतों से
दोबारा गुजरते हैं,
अपने ही अँधेरों को छूते हैं,
और पहचानते हैं
कि प्रकाश बाहर नहीं, भीतर है।

हर बार जब हम गिरते हैं,
हमारी चेतना एक सवाल पूछती है—
“क्या यही अंत है?”
और भीतर से एक धीमी-सी आवाज़ उठती है—
“नहीं, यह प्रारंभ है।”

तैर कर ऊपर आना
सिर्फ संघर्ष नहीं होता,
वह हमारी संभावनाओं का प्रमाण होता है।
हर उभार
हमारी अदृश्य शक्ति का संकेत है,
हर सांस
हमारे अस्तित्व का विधान।

ज़िंदगी चाहे जितना भी दबाए,
आदमी का हौसला
अपने ही वजन से हल्का होता है,
इसलिए ऊपर उठता है।

डूबने का डर
हमारे भीतर की सीमाएँ बनाता है,
और ऊपर तैरना
उन सीमाओं का विसर्जन।

जीवन यही है—
गहराइयों की छाती पर
अपनी ही रोशनी खोज लेना,
और हर हार के बाद
इतना भर यक़ीन रख लेना
कि
मैं फिर उठूँगा,
मैं फिर तैर आऊँगा…
राजेश अस्थाना अनंत


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