राजनेताओं की विशिष्ट पहचान को झलकाने वाली संस्कृति का बढ़ावा समय-समय पर गंभीर बहस का मसला बनता रहा है।माना कि माननीयों को उनके कार्य दायित्व को निभाने के लिए कुछ खास सहूलियतों की दरकार हो सकती है, हालांकि यह भी बहस का विषय हो सकता है, लेकिन सुविधाओं के साथ विशिष्ट का तमगा कहां तक जायज है?
हाल ही में नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए) ने सभी निजी एयरलाइनों को एक पत्र जारी कर सांसदों को विशेष सुविधाएं दिए जाने की मांग की है।यह चिट्टी न सिर्फ राजनेताओं की सामंती सोच और प्रवृत्ति की द्योतक है बल्कि यह भी बताती है कि उनके तमाम दावे कितने खोखले हैं।किसी भी राजनेता से पूछिए कि वे करते क्या हैं? चिर-परिचित जवाब मिलेगा, अजी साहब, हम तो जनता के सेवक हैं। क्या कभी सेवक का मालिक से बड़ा रसूख या रुतबा होता है? खुद को जनता का सेवक बताने वाले हमारे जनप्रतिनिधियों द्वारा विशेष रुतबे या वीआइपी दर्जे की चाहत उनकी कलई खोलने के लिए काफी है।अगर साधारण सुविधा से भी काम चल सकता है तो विशेष सुविधा क्यों? आम जनता के खून पसीने की कमाई जो टैक्सों के रूप में इकट्ठा की जाती है, उसको विशेष सुविधाएं देने में क्यों खर्च किया जाए? हमें दुनिया के अन्य मुल्कों से सीखना होगा, जो अपने सांसदों को सिर्फ वेतन देते हैं और कुछ नहीं। घर, गाड़ी, बाकी खर्च वो अपने आप करते हैं।
हाल ही में नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए) ने सभी निजी एयरलाइनों को एक पत्र जारी कर सांसदों को विशेष सुविधाएं दिए जाने की मांग की है।यह चिट्टी न सिर्फ राजनेताओं की सामंती सोच और प्रवृत्ति की द्योतक है बल्कि यह भी बताती है कि उनके तमाम दावे कितने खोखले हैं।किसी भी राजनेता से पूछिए कि वे करते क्या हैं? चिर-परिचित जवाब मिलेगा, अजी साहब, हम तो जनता के सेवक हैं। क्या कभी सेवक का मालिक से बड़ा रसूख या रुतबा होता है? खुद को जनता का सेवक बताने वाले हमारे जनप्रतिनिधियों द्वारा विशेष रुतबे या वीआइपी दर्जे की चाहत उनकी कलई खोलने के लिए काफी है।अगर साधारण सुविधा से भी काम चल सकता है तो विशेष सुविधा क्यों? आम जनता के खून पसीने की कमाई जो टैक्सों के रूप में इकट्ठा की जाती है, उसको विशेष सुविधाएं देने में क्यों खर्च किया जाए? हमें दुनिया के अन्य मुल्कों से सीखना होगा, जो अपने सांसदों को सिर्फ वेतन देते हैं और कुछ नहीं। घर, गाड़ी, बाकी खर्च वो अपने आप करते हैं।
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