मेरी डायरी
राजेश अस्थाना ब्लॉग
हिंदी और भारतीय भाषाओं का आपसी सहयोग : राष्ट्र की संपर्क भाषा की दिशा में
मीडिया का दायित्व
मीडिया का दायित्व क्या है? भूख, गरीबी, महंगाई, बीमारी, अशिक्षा, असुरक्षा...? की समस्या को उजागर करना या मीडिया का दायित्व हैं- नरेंद्र मोदी, राहुल गांधी, अरविंद केजरीवाल का प्रचार करना । पिछले दो महीने की पत्र-पत्रिकाओं और टीवी चैनलों का विश्लेषण कर लीजिए! । लेकिन मीडिया क्यों उठाए इन मुद्दों को, जब हमारे जनप्रतिनिधियों और सरकारों को ही इनसे मतलब नहीं है! शिक्षा को ही ले लीजिए। सरकारी विद्यालयों की क्या स्थिति है? दोपहर के भोजन के सहारे, मुफ्त किताब-कॉपी के सहारे शिक्षा को भगवान भरोसे छोड़ दिया गया है! दोपहर केभोजन के कारण जब-तब मर्मांतक घटनाएं घटती हैं। क्यों नहीं सरकारी विद्यालयों की दशा-दिशा सुधारी जाती है? किसी भी राजनीतिक दल के एजेंडे में, घोषणा-पत्र में क्रांतिकारी सुधार की घोषणा है? अगर आपके पास पैसा नहीं है तो आपका बच्चा अच्छी शिक्षा नहीं पा सकता! ऐसा जान-बूझ कर किया गया है! कॉन्वेंट स्कूल, शिक्षा के बाजारीकरण को फैलाने, बढ़ावा देने में सरकारों का, नीतियों का बहुत बड़ा योगदान है। अगर आपके पास पैसा नहीं है तो पर्याप्त इलाज नहीं मिल सकता। सरकारी अस्पताल बदहाली के शिकार हैं। भ्रष्टाचार के रोग के कारण तमाम सारी दवाइयां बेच दी जाती हैं। मीडिया का काम है ये जो नेतागण घूम-घूम कर वोट मांग रहे हैं, राजनीतिक दल उन्हें उन अंधेरों को दिखाएं। बिजली, पानी, सड़क से अछूते इलाकों को दिखाएं। विकास वह नहीं जो मॉल, बाजार और अट्टालिकाओं में दिखता है। विकास वह होता है, जो लोगों के जीवन-स्तर में नजर आए। ऐसा विकास आबादी के एक छोटे से हिस्से में ही नजर आता है। देश की अधिकतर आबादी तो विकास से वंचित ही है।
बेचैन समाज
वीआइपी दर्जे की चाहत
हाल ही में नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए) ने सभी निजी एयरलाइनों को एक पत्र जारी कर सांसदों को विशेष सुविधाएं दिए जाने की मांग की है।यह चिट्टी न सिर्फ राजनेताओं की सामंती सोच और प्रवृत्ति की द्योतक है बल्कि यह भी बताती है कि उनके तमाम दावे कितने खोखले हैं।किसी भी राजनेता से पूछिए कि वे करते क्या हैं? चिर-परिचित जवाब मिलेगा, अजी साहब, हम तो जनता के सेवक हैं। क्या कभी सेवक का मालिक से बड़ा रसूख या रुतबा होता है? खुद को जनता का सेवक बताने वाले हमारे जनप्रतिनिधियों द्वारा विशेष रुतबे या वीआइपी दर्जे की चाहत उनकी कलई खोलने के लिए काफी है।अगर साधारण सुविधा से भी काम चल सकता है तो विशेष सुविधा क्यों? आम जनता के खून पसीने की कमाई जो टैक्सों के रूप में इकट्ठा की जाती है, उसको विशेष सुविधाएं देने में क्यों खर्च किया जाए? हमें दुनिया के अन्य मुल्कों से सीखना होगा, जो अपने सांसदों को सिर्फ वेतन देते हैं और कुछ नहीं। घर, गाड़ी, बाकी खर्च वो अपने आप करते हैं।
‘संवेदी पुलिस’
सवाल है ‘संवेदी पुलिस’ किसकी जरूरत है? पुलिस विभाग की? राजनीतिकों की? समाज की? स्त्रियों की? लोकतंत्र की?
एक वर्ष का समय कम नहीं होता, बशर्ते हम सबक लेना चाहें कि हम पहुंचे कहां? इस बीच यौन अपराधियों के विरुद्ध कानूनी ढांचा मजबूत हुआ, पर स्त्री की सुरक्षा की कानूनी मशीनरी ज्यों की त्यों अप्रभावी दिखी।उत्पीड़न और बलात्कार की बाढ़ जरा भी नहीं थमी। वर्ष भर के अनुभवों का सबक यही निकलेगा- राज्य मशीनरी का प्राधिकार बढ़ाने से स्त्री-सुरक्षा की प्रणाली प्रभावी या विश्वसनीय नहीं हुई।
इस महीने दिल्ली और कोलकाता में घटे दो चर्चित सामूहिक बलात्कार प्रकरणों से क्या सीख ली गई?
राजनीति एक मिशन
पंचतारा होटलों की आभिजात्य संस्कृति की जगह आम आदमी पार्टी ने सड़क की संस्कृति स्थापित की। इसका असर यह पड़ा कि वातानुकूलित कमरों में बैठ कर राजनीतिक आंकड़ों का जोड़-तोड़ करने वाले भी खुद को धरतीपुत्र बताने में लग गए। उनमें सामान्य नागरिकों की तरह दिखने की होड़ लग गई। दिल्ली में ‘आप’ सरकार की जनोन्मुख कार्यशैली राजनीतिक प्रयोग मात्र नहीं है। इसके अंदर भारतीय मानस की आकांक्षा, संसदीय राजनीति में आई विकृतियों और नैतिक मूल्यों की गिरावट के प्रति क्षोभ शामिल है। इसीलिए जनता ने किसी विचारधारा के पीछे भागने की जगह केवल कार्यक्रम या कार्यनीति की घोषणा करने वाली पार्टी को सिर-आंखों पर बिठाया। राजनीति के एक नए दौर की शुरुआत हुई है। लंबे अंतराल के बाद राजनीति में मिशन की भावना का समावेश हो रहा है।
देश की पहली 'ट्विटर मौत'
सोशल मीडिया की व्यापक पहुंच इसके तेवरों को धार देती है। सुनंदा-मेहर के बीच विवाद को ही लीजिए। मेहर तरार पाकिस्तानी पत्रकार हैं और उनका भारत आना जाना नियमित नहीं है। बावजूद इसके वह शशि थरूर और सुनंदा के रिश्ते की कथित फांस बन गईं। क्यों? ट्विटर पर डायरेक्ट मैसेज भेजने की सुविधा भी होती है। मतलब यह है कि अगर दो शख्स एक दूसरे को फॉलो करते हैं तो वे एक-दूसरे को सीधे संदेश भेज सकते हैं और यह संदेश उनके फॉलोअर्स को दिखाई नहीं देगा। कई बार लोगों को लगता है कि वे बात अपने प्रोफाइल, एकाउंट या अपने मंच पर कह रहे हैं, लेकिन हकीकत में ऐसा होता नहीं है।
क्या केंद्रीय मंत्री शशि थरूर की पत्नी सुनंदा पुष्कर थरूर की मौत की एक कड़ी माइक्रो ब्लॉगिंग साइट ट्विटर से भी जोड़ी जानी चाहिए? क्या सुनंदा की मौत में ट्विटर की कोई भूमिका है? क्या सुनंदा की संदिग्ध मौत को देश की पहली 'ट्विटर मौत' की संज्ञा दी जा सकती है? सोशलाइट सुनंदा पुष्कर की मौत की गुत्थी कई सवालों के साथ इन सवालों के जवाब भी मांग रही है।